दीपावली का इतिहास
दीपावली का इतिहास

Diwali Deepavali History in Hindi | दीवाली दीपावली का इतिहास

मुझे याद है, जब पहली बार स्कूल में ये प्रोजेक्ट मिला था—”दीवाली क्यों मनाते हैं?”—तो मैंने सीधा वही लिख दिया जो टीचर ने बोर्ड पे लिखाया था: “राम जी अयोध्या वापस आए, लोगों ने दिए जलाए।” घर आकर दादी से बात की, तो हंस के बोलीं, “बेटा, हमारे गाँव में तो दीवाली का कारण माता महालक्ष्मी का आगमन बताया जाता है, राम-लक्ष्मण का किस्सा तो बाद में सुना।” तब समझ आया कि दीवाली—या दीपावली—की कहानी एक नहीं, कई परतों वाली है। जिसे हम आज “History of Deepavali, History of Diwali” सर्च कर के पढ़ते हैं, वो actually हज़ारों सालों के नारे, राज्य-क्रान्ति, फसल-चक्र और घरेलू यादों का मिश्रण है।

वेदों और हड़प्पा से झांकती रोशनी

सबसे पुराना जिक्र “दीप” का ऋग्वेद में मिलता है, जहाँ अग्नि को घर लाने वाला देवता माना गया। हड़प्पा सभ्यता के खुदाई में मिट्टी के दीये मिले हैं, पर क्या वे “दीपावली” मना रहे थे, ये कह पाना मुश्किल है। फिर भी इतना तय है—दीप जलाने की परम्परा सिन्धु घाटी से पहले भी थी, बस नाम दीवाली तब नहीं था।

अयोध्या कांड: रामायण वाला ट्रैक

वाल्मीकि रामायण में राम के राज्याभिषेक की ख़ुशी में “प्रदोष काल” में दीप जलाने का जिक्र है। ये बात करीब-करीब ईसा पूर्व ५-४ शताब्दी की है। लेकिन यही किस्सा तुलसीदास के “रामचरितमानस” (१६वीं सदी) में इतना रंगीन हुआ कि उत्तर भारत के हर घर ने उसे दीवाली का ‘ऑफिशियल बैक-स्टोरी’ मान लिया। मेरी खुद की पढ़ाई बनारस में हुई; वहाँ दशहरे के ठीक बाद से ही रामलीला मैदान सजते हैं, और दीवाली वाली रात “राम का राजतिलक” दिखाया जाता है। लोग आँखों में पानी लिए खड़े रहते हैं—इतिहास और भक्ति का वो मिक्स तड़का है जो टेक्स्टबुक में नहीं मिलता।

पंजाब और हरियाणा: बंधन वाली दीवाली

गुरु हरगोबिन्द साहब को ग्वालियर फ़ोर्ट से रिहाई मिली थी दीवाली के दिन। सिख परम्परा में इसे “बंदी छोड़ दिवस” कहते हैं। स्वर्ण मंदिर अमृतसर को सजाने की परम्परा भी इसी वजह से शुरू हुई। मेरे एक मित्र जठेरे (जट्ट सिख) हैं; वे बताते हैं कि उनके गाँव में अब भी दीवाली की सुबह नगर कीर्तन होता है, और शाम को पटाखे नहीं, बल्कि “तोरण” बिजली के बल्बों से जगमगाते हैं। यानी इतिहास एक ही, पर लोकाचार अलग-अलग।

बंगाल और पूर्वोत्तर: काली पूजा का चैनल

बंगाली कैलेंडर में दीवाली की रात “काली पूजा” होती है। रामायणी कथा यहाँ बैक-बर्नर पर है। १८वीं सदी में राजा कृष्णचन्द्र राय ने नवदुर्गा उत्सव को बढ़ावा दिया, तब से काली पूजा दीवाली से ओवरलैप हो गई। मेरे कोलकाता वाले किराने वाले दा बताते हैं, “माँ काली के लिए लाल रंग का फूल और हरी मिर्च चढ़ाना है, बाकी लक्ष्मी-गणेश साइड बेंच पर बैठे हैं।”

महाराष्ट्र, गुजरात: बलि-प्रतिपदा और विक्रम संवत

दक्षिण में “बलि पाडवा” है, तो गुजरात में नया व्यापारिक साल शुरू होता है। मारवाड़ी दोस्त बताते हैं कि उनके यहाँ दीवाली की रात “चोपड़ा पूजन” होता है; नया बही-खाता लक्ष्मी जी के नाम खोला जाता है। ये परम्परा मालवा के राजा विक्रमादित्य के समय (ई.स. ५६) से जोड़ी जाती है, जब उन्होंने नया संवत चलाया। इतिहासकार इसे पक्का नहीं मानते, पर व्यापारिक हिन्दू समाज ने इसे अपना लिया।

दक्षिण भारत: नरक चतुर्दशी और यम-तर्पण

तेलुगु और तमिल घरों में दीवाली का मुख्य दिन चौदहवीं रात को होता है—”नरक चतुर्दशी।” कथा है कि सत्यभामा ने नरकासुर को मारा, और भगवान कृष्ण ने उसकी मृत्यु के बाद यम-तर्पण का संकेत दिया। इसीलिए वहाँ सुबह-सुबह तेल-स्नान और यम-दीप दान होता है। मेरे चेन्नई वाले किरदार “मुरुगन” का कहना है, “हमारे यहाँ पटाखा सिर्फ़ ४ बजे सुबह, उसके बाद इडली-सांभार—कोई राम-लक्ष्मण नहीं आते।”

फसल-चक्र और लोक-अर्थशास्त्र

सच बताऊँ, तो दीवाली का असल engine कृषि कैलेंडर है। कार्तिक महीने में धान की कटाई हो चुकी होती है, खलिहान में नया अनाज आ गया होता है। किसान के पास थोड़ा नकद होता है, व्यापारी के पास नया माल। पुराने समय में रोशनी का मतलब था—”घर में अन्न-धन है, हम बचे हैं, आओ मिलकर उमंग मनाएँ।” इसलिए लक्ष्मी पूजन logical है; वो धन-देवी नहीं, धन-संस्कृति की personification हैं।

विदेशी रिकॉर्ड: अल-बिरूनी से शेरशाह तक

११वीं सदी में अल-बिरूनी ने लिखा कि “हिंदू लोग कार्तिक अमावस्या को दीप जलाते हैं और अपने खजाने गिनते हैं।” शेरशाह सूरी के समय (१६वीं सदी) तक दीवाली “राजसी” त्योहार बन चुकी थी; अकबर ने भी दीवान-ए-खास में चांदी के दीये मंगवाए, और शाहजहाँ ने लाल किले की दीवारें दीप से सजवाईं। यानी मुग़ल भी इस रोशनी-रिवाज़ से अछूते नहीं रहे।

औपनिवेशिक दौर: पटाखा और ‘इंडियन आइडेंटिटी’

१८वीं सदी में चीन से आए सस्ते पटाखे, और अंग्रेज़ों ने इसे “Indian fireworks season” के तौर पर रिपोर्ट किया। बाद में स्वदेशी लॉबी ने खुद के मैच-फैक्टरी खड़े किए—सिवाकासी, तमिलनाडु का जन्म इसी दौर में हुआ। आज जब हम “green crackers” की बात करते हैं, तो असल में उसी लीगेसी को सुधारने की कोशिश है।

आधुनिक भारत: राष्ट्रीय छुट्टी से लेकर सेल-सीज़न तक

१९५० के बाद दीवाली भारत की official holiday list में आ गई। १९९१ के उदारीकरण ने इसे “Great Indian Sale” में बदल दिया। मेरा पहला वेतन २००८ का, याद है—Flipkart पर ₹१००० का फोन खरीदा था, और अगले दिन ऑफिस में सबने दीये वाला स्टिकर वाला डिब्बा दिया। पुराने दीये और नए डिस्काउंट—दोनों साथ चल रहे हैं।

बहस: इतिहास बनाम पर्यावरण

दिल्ली में जब AQI ४०० पार करता है, तो ट्विटर वॉर होती है—”दीवाली वाले पटाखे दोषी” vs “किसान पराली ज़िम्मेदार।” सच ये है कि दोनों अपनी जगह contribute करते हैं। मेरा निजी stand: इतिहास में कहीं भी १४वीं शताब्दी के बाद continuous fireworks का जिक्र नहीं मिलता; ये २०वीं सदी की mass-produced habit है। Tradition का मतलब पटाखा नहीं, दीपक है। बाकी आपकी call।

डायस्पोरा: ट्राम-स्टॉप से टाइम्स-स्क्वॉयर तक

फिजी, मॉरिशस, साउथ-अफ़्रीका—जहाँ भारतीय गए, दीये भी गए। लंदन का हर मेजर मॉल आज “Diwali Sale” करता है, और न्यूयॉर्क में एम्पायर स्टेट बिल्डिंग २०२० से दीवाली रंगों में रोशन होती है। वहाँ भी debate होता है—”cultural appropriation” या “soft power”? मेरी राय: जब कोई गोरा बच्चा दीया बना के कहे “Happy Diwali,” वो हमारा इतिहास सीख रहा है, चाहे accent कैसा भी हो।

संक्षेक? नहीं, बस pause

दीवाली का इतिहास एक straight line नहीं, बल्कि ऐसे दीपक हैं जो हर युग में, हर समुदाय ने अपने मुताबिक जलाए। राम लौटे थे, कृष्ण जीते थे, किसानों की फसल आई थी, व्यापारियों का नया साल शुरू हुआ था, गुरु हरगोबिन्द रिहा हुए थे, काली माँ पूजी गईं—सब सच हैं, सब अधूरे हैं। जब आप अगली बार दीया जलाएँ, तो सोचिए कि आप किस परत को आगे बढ़ा रहे हैं—मिथक, इतिहास, या बस एक पुरानी मानवीय ज़रूरत: अंधेरे में रोशनी की।
और हाँ, मैंने जो भी तारीख़ें या कथाएँ दी हैं, वे mainstream sources पर आधारित हैं। नए शोध आते रहते हैं; कल कोई manuscript मिल भी सकता है जो कहानी बदल दे। तब मैं update कर दूँगी; आप भी comment कर देना। तब तक के लिए—दीया धीरे-धीरे जलाइए, पटाखा कम करिए, और इतिहास को ज़िंदा रखिए, न कि धुएँ में उड़ाइए।

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